Thursday, February 26, 2009

भतीजा के पत्र पर चाचा का उत्तर !

स्नेही पाठक गण,
उदार-ज्वाला में तप्त दीर्घ अन्तराल तक आप से दूर रहा ! किन्तु आज आप से साक्षात्कार की उत्कट आकांक्षा खींच ही लाई ! सोचा बहुत दिनों पर आ रहा हूँ सो खाली हाथ कैसे मिलूं ? कुछ नया नहीं था सो वर्षों पहले अपने चाचा जी को लिखा एक पत्र और उसका पत्रोत्तर लेकर आ गया ! घर की मगजमारी से आपका भेजा फ्राई करने के लिए माफी चाहूँगा ! लेकिन आपकी प्रतिक्रिया की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी !!
-- करण समस्तीपुरी

***

पूज्यवर चाचा जी,
चरण स्पर्श !

आपको पत्र लिखते हुए हो रहा है हर्ष !!
स्नातकोत्तर में सर्वाधिक उनहत्तर प्रतिशत लाया हूँ !
आपके आशीष से विश्वविद्यालय में प्रथम आया हूँ !!

अब आगे क्या करूँ ? हाय कुछ नहीं समझ पाता हूँ !
अनिश्चित भविष्य को देख, बरवस डर जाता हूँ !!

आपसे है अनुरोध कि अब कुछ ऐसी राह दिखाएँ !
अर्जन भी हो सके, साथ ही पी. एचडी. कर जाएँ !!

इधर बिहार में शिक्षक नियुक्ति की बयार चली है !
अंक हैं अच्छे इसीलिये थोड़ी सी आस पली है !!

किन्तु यहाँ के लुज-पुज नियम, नित्य विरोधी बातें !
सुन-सुन कर उम्मीदों पर संशय के बादल छाते !!

वैसे भी इस व्यवस्था में अपना विश्वास नहीं है !
गर हो गया तो अच्छा है, वरना कोई बात नहीं !!

एक और सपना है कि मैं पत्रकार बन जाऊं !
अवसर ऐसा मिले कि जग में नाम अमर कर जाऊं !!
नालंदा विश्वविद्यालय से इस वर्ष इसी सेशन में !
कर रहा हूँ पी.जी. डिप्लोमा मास कम्युनिकेशन में !!

रखा बचाए उम्मीदों की लौ को बड़े जतन से !
निर्धनता, निर्बलता और विषमता रुपी पवन से !!

उम्मीदों का बढा बोझ अब मुझ से न उठ पायेगा !
मिला न गर सहयोग आपका तो यह टूट जायेगा !!

फुरसत के क्षण मिलते ही कवितायें बन जाती हैं !
संघर्ष और वेदना से ही आखिर स्वर पाती हैं !!

श्री श्याम नारायण जी को मैं ने पत्र लिखा कई बार !
किन्तु पत्र का उत्तर देना उन्हें नहीं स्वीकार !!

अब मैं भला कहाँ जाऊं ? क्या करूँ ? आप समझाएं !
शिथिल हो रहे कदमों को मंजिल की राह दिखाएँ !!

अब क्या लिखूं अधिक आप तो सब कुछ जान रहे हैं !
आप शीघ्र ही याद करेंगे, हम ऐसा मान रहे हैं !!

दोनों भाई को स्नेह, चाची को नमन कहेंगे !
लिखने में जो भूल हुई हो, उसको माफ़ करेंगे !!

शेष कुशल है, जैसी भी है, परमेश्वर की इच्छा !
बेसब्री से कर रहा हूँ पत्रोत्तर की प्रतीक्षा !!

स्नेहभाजन,
केशव
रेवाड़ी,
०८. अक्तूबर, २००६


प्रिय केशव,
शतायु भवः,


काव्यात्मक शैली में लिखित पत्र तुम्हारा पाया !
परीक्षा में प्रथम आए, मन जान बहुत हर्षाया !!

आगे भी बस ऐसे ही आगे को बढ़ते रहना !
स्वर्णिम भविष्य है समक्ष, बस कुछ बाधाएं सहना !!

पढने और पढाने का मार्ग तुमने चुना, सही है !
शोध कार्य आरम्भ करो अब, सर्वोत्तम यही है !!

शिक्षक पद हेतु आवेदन अति शीघ्र कर डालो !
मेधा को ठुकरा न सकेंगे मन में इसे बसा लो !!

मन का संशय दूर करो, कर्म पर करो विश्वास !
बाकी ‘उसके’ उपर छोड़ दो, पूरी होगी आस !!

पत्रकार बनने का अब, अच्छा है ख्याल तुम्हारा !
अध्ययन और समर्पण के बिन होगा नहीं गुजारा !!

नालंदा विश्वविद्यालय का जग में कैसा है रेपुटेशन !
अच्छा होता गर दिल्ली से करते मास-कम्युनिकेशन !!
उम्मीदों की लौ पर ही तो दुनिया टिकी हुई है !
निर्धनता और विषमता से मानवता बिकी हुई है !!

तुम तो हो इस घर का एक अनमोल सितारा !
जब चाहो जैसे चाहो, पाओ सहयोग हमारा !!

शैली और प्रवाह देख कर मुदित हुआ मन मेरा !
शैली में सुन्दरता आती, पड़ता जब संघर्ष थपेड़ा !!

श्याम नारायण जी पर था टूटा विपदाओं का पहाड़ !
पत्नी का स्वर्गवास हुआ और स्वयं भी थे बीमार !!

एक बार पुनः तुम उन से संपर्क साध कर देखो !
अन्यथा और भी पथ कई है, बस उधर को लेखो !!

विजय प्राप्त करना विपत्ति पर अपनी हर मुस्कान से !
सार्थक सृजन तुम्हे करना है, त्याग और बलिदान से !!

दुःख शामिल रहता हर सुख में उक्ति सही मतवालों की !
सुख-सुविधाओं के जंगल में, गुंजलिका जंजालों की !!

संध्या के क्रंदन में रहती छुपी हुई मुस्कान उषा की !
बढे चलो जीवन समर में, मत समझो तुम हो एकाकी !!

वेगमय उल्लास लेकर, सफलता की आस लेकर !
शिथिल पग होने ना पाए, एक गहरी श्वास लेकर !!


आगे बढो नभ को छू लो, एक नया विश्वास लेकर !
समय देहरी पर खड़ा है, हाथ में मधुमास लेकर !!

उन शिलाओं पर लिखा जो लेख वह इतिहास है !
सामने तेरे पड़ा तो खुला हुआ आकाश है !!


जब तक रक्त में संचार है तो हस्त में संसार है !
मत सोच हर दम आदमी होता नियति का दास है !!

शुभाकांक्षी,
मनोज कुमार
कलकत्ता,
१३ नवम्बर २००६





2 comments:

आशीष "अंशुमाली" said...

काव्‍यात्‍मक शैली में किया गया पत्राचार अच्‍छा लगा। अग्रजों से सदैव नेक सीख ही मिलती है। समूची मानवता इसी तरह पली बढ़ी है। पुनश्‍च् साधुवाद।

Rajeev Ranjan Lal said...

बहुत खूब। जहाँ पढ़ने में मजा आया वहीं कुछ जीवन की जटिल समस्याओं से सरोकार हुआ। शैली काफी रोचक थी। एक बार जो शुरूआत की तो खुद को रोक नहीं पाया।