Monday, May 11, 2009

है दुआ दे रहा तेरा भाई

मित्रों,
मैं बड़ा अभागा महसूस कर रहा था क्योंकि भगवान् ने मुझे बहन नहीं दिया था ! लेकिन जिन्दगी के सफ़र में वो मुकाम भी आया, जब मुझे बहन भी मिल गयी ! जो भगवान् ने नहीं दिया वो एक संयोग ने दे दिया ! ठीक छः साल पहले आज ही के दिन बोले तो ११ मई, २००९ को मेरी ये प्यारी मुहबोली बहन, परिणय-सूत्र में बंध कर अपने बाबुल को अलविदा कह गयी और अपने इस भाई को भी ! वर्षों पहले ह्रदय के उदगार को अपरिपक्व कलम ने जितना समझा यही उपहार था मेरी तरफ से मेरी बहन के लिए ! आज छः वर्षों के बाद आपके सामने वही उपहार ले के फिर से हाज़िर हूँ !! आपकी प्रतिक्रया अपेक्षित है !! - करण समस्तीपुरी

सारे जग से बड़ी, इक ख़ुशी की घड़ी !
मेरे सौभाग्य से आज आई,
है दुआ दे रहा तेरा भाई !!
मेरी प्यारी बहन, बन रही है दुल्हन,
लाल जोरे में बैठी लजाई,
है दुआ दे रहा तेरा भाई !!
मन में सपनों की बारात लेके,
दिल में खुशियों की सौगात लेके !
हो रही बावली,
वो मेरी लाडली !
ये ख़ुशी मेरे मन में ना समाई,
है दुआ दे रहा तेरा भाई !!
मेरी बहना तू लाखों हजारों में,
जैसे चंदा, करोरों सितारों में !
खूबसूरत कली, खुशियों में पली !
हर तरफ तेरी खुशबु है छाई,
है दुआ दे रहा तेरा भाई !!
शक न तू है बड़ी भाग्य वाली,
तेरा दूल्हा भी सौभाग्यशाली !
चाँद जैसा सजन, चांदनी सी दुल्हन !
क्या विधाता ने जोड़ी बनाई,
है दुआ दे रहा तेरा भाई !!
देव पूजे कई तुमको पाया,
प्राण मेरे, तू ही मेरी छाया !
दिल है गद-गद मगर, रो रही है नजर !
हो रही आज बहना पराई,
है दुआ दे रहा तेरा भाई !!
रीति संसार की ये सुहावन,
नित परस्पर बढे प्रीती पावन !
प्रेम बंधन है ये, तुम निभाना इसे !
सारी दुनिया जिसे है निभाई,
है दुआ दे रहा तेरा भाई !!
प्रेम रस का वो प्याला पिला दें,
कभी आये न मायके की यादें !
सुख सफलता मिले, फूल नित नव खिले !
रहे वगिया में हरियाली छाई !
है दुआ दे रहा तेरा भाई !!
*****

Thursday, February 26, 2009

भतीजा के पत्र पर चाचा का उत्तर !

स्नेही पाठक गण,
उदार-ज्वाला में तप्त दीर्घ अन्तराल तक आप से दूर रहा ! किन्तु आज आप से साक्षात्कार की उत्कट आकांक्षा खींच ही लाई ! सोचा बहुत दिनों पर आ रहा हूँ सो खाली हाथ कैसे मिलूं ? कुछ नया नहीं था सो वर्षों पहले अपने चाचा जी को लिखा एक पत्र और उसका पत्रोत्तर लेकर आ गया ! घर की मगजमारी से आपका भेजा फ्राई करने के लिए माफी चाहूँगा ! लेकिन आपकी प्रतिक्रिया की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी !!
-- करण समस्तीपुरी

***

पूज्यवर चाचा जी,
चरण स्पर्श !

आपको पत्र लिखते हुए हो रहा है हर्ष !!
स्नातकोत्तर में सर्वाधिक उनहत्तर प्रतिशत लाया हूँ !
आपके आशीष से विश्वविद्यालय में प्रथम आया हूँ !!

अब आगे क्या करूँ ? हाय कुछ नहीं समझ पाता हूँ !
अनिश्चित भविष्य को देख, बरवस डर जाता हूँ !!

आपसे है अनुरोध कि अब कुछ ऐसी राह दिखाएँ !
अर्जन भी हो सके, साथ ही पी. एचडी. कर जाएँ !!

इधर बिहार में शिक्षक नियुक्ति की बयार चली है !
अंक हैं अच्छे इसीलिये थोड़ी सी आस पली है !!

किन्तु यहाँ के लुज-पुज नियम, नित्य विरोधी बातें !
सुन-सुन कर उम्मीदों पर संशय के बादल छाते !!

वैसे भी इस व्यवस्था में अपना विश्वास नहीं है !
गर हो गया तो अच्छा है, वरना कोई बात नहीं !!

एक और सपना है कि मैं पत्रकार बन जाऊं !
अवसर ऐसा मिले कि जग में नाम अमर कर जाऊं !!
नालंदा विश्वविद्यालय से इस वर्ष इसी सेशन में !
कर रहा हूँ पी.जी. डिप्लोमा मास कम्युनिकेशन में !!

रखा बचाए उम्मीदों की लौ को बड़े जतन से !
निर्धनता, निर्बलता और विषमता रुपी पवन से !!

उम्मीदों का बढा बोझ अब मुझ से न उठ पायेगा !
मिला न गर सहयोग आपका तो यह टूट जायेगा !!

फुरसत के क्षण मिलते ही कवितायें बन जाती हैं !
संघर्ष और वेदना से ही आखिर स्वर पाती हैं !!

श्री श्याम नारायण जी को मैं ने पत्र लिखा कई बार !
किन्तु पत्र का उत्तर देना उन्हें नहीं स्वीकार !!

अब मैं भला कहाँ जाऊं ? क्या करूँ ? आप समझाएं !
शिथिल हो रहे कदमों को मंजिल की राह दिखाएँ !!

अब क्या लिखूं अधिक आप तो सब कुछ जान रहे हैं !
आप शीघ्र ही याद करेंगे, हम ऐसा मान रहे हैं !!

दोनों भाई को स्नेह, चाची को नमन कहेंगे !
लिखने में जो भूल हुई हो, उसको माफ़ करेंगे !!

शेष कुशल है, जैसी भी है, परमेश्वर की इच्छा !
बेसब्री से कर रहा हूँ पत्रोत्तर की प्रतीक्षा !!

स्नेहभाजन,
केशव
रेवाड़ी,
०८. अक्तूबर, २००६


प्रिय केशव,
शतायु भवः,


काव्यात्मक शैली में लिखित पत्र तुम्हारा पाया !
परीक्षा में प्रथम आए, मन जान बहुत हर्षाया !!

आगे भी बस ऐसे ही आगे को बढ़ते रहना !
स्वर्णिम भविष्य है समक्ष, बस कुछ बाधाएं सहना !!

पढने और पढाने का मार्ग तुमने चुना, सही है !
शोध कार्य आरम्भ करो अब, सर्वोत्तम यही है !!

शिक्षक पद हेतु आवेदन अति शीघ्र कर डालो !
मेधा को ठुकरा न सकेंगे मन में इसे बसा लो !!

मन का संशय दूर करो, कर्म पर करो विश्वास !
बाकी ‘उसके’ उपर छोड़ दो, पूरी होगी आस !!

पत्रकार बनने का अब, अच्छा है ख्याल तुम्हारा !
अध्ययन और समर्पण के बिन होगा नहीं गुजारा !!

नालंदा विश्वविद्यालय का जग में कैसा है रेपुटेशन !
अच्छा होता गर दिल्ली से करते मास-कम्युनिकेशन !!
उम्मीदों की लौ पर ही तो दुनिया टिकी हुई है !
निर्धनता और विषमता से मानवता बिकी हुई है !!

तुम तो हो इस घर का एक अनमोल सितारा !
जब चाहो जैसे चाहो, पाओ सहयोग हमारा !!

शैली और प्रवाह देख कर मुदित हुआ मन मेरा !
शैली में सुन्दरता आती, पड़ता जब संघर्ष थपेड़ा !!

श्याम नारायण जी पर था टूटा विपदाओं का पहाड़ !
पत्नी का स्वर्गवास हुआ और स्वयं भी थे बीमार !!

एक बार पुनः तुम उन से संपर्क साध कर देखो !
अन्यथा और भी पथ कई है, बस उधर को लेखो !!

विजय प्राप्त करना विपत्ति पर अपनी हर मुस्कान से !
सार्थक सृजन तुम्हे करना है, त्याग और बलिदान से !!

दुःख शामिल रहता हर सुख में उक्ति सही मतवालों की !
सुख-सुविधाओं के जंगल में, गुंजलिका जंजालों की !!

संध्या के क्रंदन में रहती छुपी हुई मुस्कान उषा की !
बढे चलो जीवन समर में, मत समझो तुम हो एकाकी !!

वेगमय उल्लास लेकर, सफलता की आस लेकर !
शिथिल पग होने ना पाए, एक गहरी श्वास लेकर !!


आगे बढो नभ को छू लो, एक नया विश्वास लेकर !
समय देहरी पर खड़ा है, हाथ में मधुमास लेकर !!

उन शिलाओं पर लिखा जो लेख वह इतिहास है !
सामने तेरे पड़ा तो खुला हुआ आकाश है !!


जब तक रक्त में संचार है तो हस्त में संसार है !
मत सोच हर दम आदमी होता नियति का दास है !!

शुभाकांक्षी,
मनोज कुमार
कलकत्ता,
१३ नवम्बर २००६





Thursday, October 23, 2008

आओ दीप जालायें आली !

आओ दीप जलायें आली !
खुशियाँ ले कर आयी दिवाली !!
सब पर्वों में प्रिय पर्व यह,
इसकी तो है बात निराली !
आओ दीप जालायें आली !!

बंदनवार लगे हैं घर-घर !
रात सजी है दुल्हन बन कर !!
दीपक जलते जग-मग-जग-मग !
रात चमकती चक-मक-चक-मक !!
झिल-मिल दीपक की पांति से,
रहा न कोई कोना खाली !
आओ दीप जलायें आली !!

दादू लाये बहुत मिठाई,
लेकिन दादी हुक्म सुनाई !!
पूजा से पहले मत खाना,
वरना होगी बड़ी पिटाई !
मोजो कहाँ मानने वाली,
छुप के एक मिठाई खा ली !
आओ दीप जालायें आली !!

अब देखें आँगन में क्या है,
अरे यहाँ तो बड़ा मजा है !
भाभी सजा रही रंगोली !
उठ कर के भैय्या से बोली,
सुनते हो जी ! किधर गए ?
ले आओ दीपक की थाली !
आओ दीप जलायें आली !!

सुम्मी एक पटाखा छोड़ी !
अवनी डर कर घर में दौड़ी !!
झट पापा ने गोद उठाया!
बड़े प्यार से उसे बुझाया !!
देखो कितने दीप जले हैं !
एक दूजे से गले मिले हैं !!
नन्हें दीपक ने मिल जुल कर,
रोशन कर दी रजनी काली !!
आओ दीप जालायें आली !!

नमस्कार मित्रों,

अतिशय व्यावसायिक व्यस्तता के कारण ब्लॉग-भ्रमण नही कर पा रहा था. आख़िरी पोस्ट आज से ठीक एक महीने पूर्व प्रकाशित किया था. ज्योति-पर्व पर अपनी एक पुरानी रचना ले कर आपकी सेवा में उपस्थित हूँ! पूर्व मे यह कविता हिंद युग्म पर प्रकाशित हो चुकी है! काव्य-पथ पर निरंतर अग्रसर होने के लिए आपका प्रोत्साहन और मार्ग-दर्शन अपेक्षित है! ज्योति पर्व की शुभ कामनाओं के साथ,

करण समस्तीपुरी