स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन !
उर सिहर गया क्षण ठहर गया,
और अतीत बना दर्पण !!
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन !
कर यत्न दिया विश्राम इसे !
पीड़ा उर की बतलाऊं किसे !!
यह काल आवरण ओढ़ परी !
स्मरण पटल में जा गहरी !
पर पुनः पवन से पा जीवन,
फिर जाग उठी यादों की अगन !
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन !!
नीरव नीर में शांत शिथिल,
दृग में अतीत का स्वप्न लिए,
किस्मत को कौन बदल सकता,
क्या मिला बहुत प्रयत्न किए !
जगा गयी स्मरण विहग को,
अरुणोदय की तीक्ष्ण किरण !
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन !!
अकुला कर दीन विहग बोला,
अलसाई निज पलकें खोला !
सुदीर्घ रात का प्रात जान,
खग उड़ा नीड़ से पंख तान !
पंक्षी पर अंकुश कौन रखे,
पा गया निमिष में दूर गगन !!
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन !!
अम्बर का अंत कहाँ पावे,
बीते हुए कलह कैसे आवे !
आ गया गगनचर फिर थक के,
आशा फिर मिलने की रख के !
उर धीर भरा, सुर पीर भरा,
हो गाने लगा वह मस्त मगन !
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन !!
- केशव कुमार कर्ण
Tuesday, May 27, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
bahut achha likha hai. Dhanyavaad sweekaaren
मित्र,
बहुत ही सुंदर लिखा है | पूरा संतुलित सा जान पङता है | एक लय है |
अनेक बधाई |
-- अवनीश तिवारी
अकुला कर दीन विहग बोला,
अलसाई निज पलकें खोला !
सुदीर्घ रात का प्रात जान,
खग उड़ा नीड़ से पंख तान !
पंक्षी पर अंकुश कौन रखे,
पा गया निमिष में दूर गगन !!
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन !! आपका हार्दिक स्वागत है कृपया पधारें manoria.blogspot.com and knajiswami.blog.co.in
Post a Comment