Wednesday, August 27, 2008

कल्पना एक बड़ी- करण समस्तीपुरी

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

मन मन्दिर के मृदुल सतह में,
पली कल्पना एक बड़ी,
कल्प लोक से उतर धरा पर
आयी हो तुम कौन परी?
अकथ प्रशंसित दिव्या सुवासित,
उस असीम की जादूगरी,
कल्प लोक से उतर धारा पर
आयी हो तुम कौन परी?

रवि की प्रथम रश्मि से सुरभित,
जैसे तरुण अरुण जलजात,
परम रम्य विधु-वादन मनोहर,
और सुकोमल सुंदर गात,
ब्रह्मानंद सरिस हो तुम,
प्रति अंग पीयूष पराग भरी,
कल्प लोक से उतर धारा पर,
आयी हो तुम कौन परी?

आयी हो तुम किस गिरी सर से,
भूतल, घन, वन या अम्बर से,
लाई हो क्या वर इश्वर से,
कुछ तो कह अभिराम अधर से,
सार सरस निज शीघ्र बताओ,
बीते न अनमोल घड़ी,
कल्प लोक से उतर धरा पर,
आयी हो तुम कौन परी?

रति सम सुंदर, सत्य सती सम,
वैभव विष्णु प्रिया सी,
शील गुणों में शारद जैसी,
सबल शैल तनया सी,
क्षमाशीलता वसुधा जैसी,
निर्मल जैसे देवसरी,
कल्प लोक से उतर धारा पर,
आयी हो तुम कौन परी?

अधरों पर पुष्प का हास रहे,
कर्मों में मधुर सुवास रहे,
पड़े न दुःख की परछाईं,
नयनों में दिव्य प्रकाश रहे,
किसलय के कोमल अंचल में,
रहो सदा तुम हरी-भरी,
कल्प लोक से उतर धारा पर,
आयी हो तुम कौन परी?

4 comments:

महेन्द्र मिश्र said...

मन मन्दिर के मृदुल सतह में,
पली कल्पना एक बड़ी,
कल्प लोक से उतर धरा पर
आयी हो तुम कौन परी?
sundar achana .

रश्मि प्रभा... said...

अधरों पर पुष्प का हास रहे,
कर्मों में मधुर सुवास रहे,
पड़े न दुःख की परछाईं,
नयनों में दिव्य प्रकाश रहे,
किसलय के कोमल अंचल में,
रहो सदा तुम हरी-भरी,
कल्प लोक से उतर धारा पर,
आयी हो तुम कौन परी? .........
prarambh bahut sashakt

आशीष "अंशुमाली" said...

लाई हो क्या वर इश्वर से,
कुछ तो कह अभिराम अधर से,
सार सरस निज शीघ्र बताओ,
बीते न अनमोल घड़ी,
कल्प लोक से उतर धरा पर,
आयी हो तुम कौन परी?

भाई वाह... थिरक रही है कलम.. पढ़कर बहुत मुदित हुआ। नये ब्‍लाग की बधाई स्‍वीकारें।

Amit K Sagar said...

बहुत अच्छी रचना. शुक्रिया.